यह एक प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर का इतिहास लगभग 700 वर्ष पुराना है। इस मंदिर का शिलान्यास बाबा जानकी दास जी महाराज द्वारा किया गया था। यहाँ पर जो हनुमान जी की जो प्रतिमा है, वह बाबा जानकी दास जी के स्वप्न मे आकर स्वयं हनुमान जी ने दर्शन दिए, और ढाक के पेड़ के नीचे हनुमान जी ने उनको अपनी प्रतिमा स्थापित करने को कहा, उसके बाद बाबा जानकी दास जी ने विभिन्न तीर्थ स्थलों से मिट्टी लाकर इनुमान जी की प्रतिमा स्थापित कर दी। यह एक प्रसिद्ध मंदिर है। यहां पर आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु की मनोकामना पूर्ण होती हैं। यहॉ प्रत्येक मंगलवार को मेला लगता है।
राम नवमी से हनुमान जयंती तक अखंड महामंत्र का जाप किया जाता है। ये है पंचमुखी मंदिर ढाका बसातियांवाला | ऐसे हनुमान जी के दर्शन पूरे भारतवर्ष में कहीं भी नही है। क्योंकि चारों दिशाओं में चारों मुख है। और एक आकाश की तरफ है। पूर्व दिशा की ओर हनुमान जी का मुख है। ये बलबुद्धि के दातार हैं। दूसरा मुख जो पश्चिम की तरफ है। ये मुख गरूड़ देव भगवान का है। जिन्हें पक्षियों का राजा कहा जाता है। जितने भी विष पदार्थ हैं, उनको भक्षण करने के लिए और जिनकी कुंडली में काल सर्प योग होता है, उनको दर्शन करने मात्र से ही शांति मिल जाती है। तीसरी मुख जो उत्तर दिशा में है, वो वार भगवान का है। सदा संतोषी, सदा सुखी ।चौथा मुख जो दक्षिण दिशा में है, ये नरसिंह भगवान का है। ये शत्रु या दुश्मन का वध करने के लिए है। पॉंचवा मुख जो आकाश की तरफ है, वो हैग्रिव भगवान का है। ये वशीकरण या तंत्र मंत्र सबको काटने के लिए है। ये पंचमुखी हनुमान तब हुए, जब रावण का भाई अडिरावण श्री राम
और लक्ष्मण को बंदी बनाकर पाताल लोक ले गया था। अहिरावण पाताल पुरी का राजा था। इनका द्वारपाल मकर ध्वज था।जो हनुमान जी का पुत्र था।जब हनुमान जी कपी स्वरूप में जाते हैं,तो मकर ध्वज से मुलाकात होती है। तो पिता पुत्र में युद्ध ना होने के कारण मकर ध्वज ने एक सलाह दी कि पिता जी आप मुझे बांध दीजिए व अंदर प्रवेश कर जाइये। जब हनुमान जी अंदर जाते हैं तो वहां एक गंदगी का किला बना हुआ था। तो हनुमान जी ने वार भगवान का रूप धारण किया, गंदगी के किले को तोड़ने के लिए और आगे जब जाते हैं तो बड़े बड़े विषैले नाग पड़े हुए हैं, तो हनुमान जी ने गरूड़ भगवान का मुख धारण किया और आगे जब जाते हैं, तो वशीकरण यंत्र तंत्र सब लगे हुए हैं। तो हनुमान जी ने हैग्रिव भगवान का मुख धारण किया। जब हनुमान जी अंदर प्रवेश करते हैं और देखते हैं कि अहिरावण श्री राम और लक्षमण की बलि चढ़ाने के लिए देवी पूजन कर रहा था। हनुमान जी,माता के पीछे जाकर बोले कि माता जी आप
यहां से हट जाइये, ये मेरे भगवान श्री राम और लक्ष्मण हैं | तो माता जी नही मानी, क्योंकि उन्हें आहार मिलने वाला था। तो हनुमान जी ने एक लात मारकर नीचे जमीन में धसा दिया। और स्वयं देवी के स्थान पर खड़े हो गए। जितनी भी पूजा की सामग्री थी,सबको भक्षण किया। उसके बाद हनुमान जी को गुस्सा आया। फिर उन्होंने फिर नरसिंह भगवान का मुख धारण किया और अहिरावण को पकड़कर उनकी भुजा उखाड़ दी।
बायीं भुजा असुर दल मारे, दाहिनी भुजा संत जन तारे
फिर अडिरावण का वध करके राम, लक्ष्मण को पीठ पर बिठा कर युद्ध क्षेत्र में ले गए।
जय श्री पंचमुखी हनुमान जी